Tuesday, 30 August 2011

मिस्र-इजराइल

मध्य-पूर्व में संघर्ष का नया दौर

अन्तर्राष्ट्रीय जगत में पश्चिम एशिया दुनिया के सबसे अशांत क्षेत्र के रूप में बदनाम है। शांति का तो जैसे इस क्षेत्र में कोई वास्ता ही नहीं है। महाशक्तियों और पश्चिमी राष्ट्रों के द्वारा शांति स्थापना की दिशा में किए गए प्रयास व उनके दावे खोखले साबित हुए है। एक तरफ शांति संघर्ष और समझौते होते रहे तो दूसरी तरफ राष्ट्रीय हित की आड़ में सैनिकों, सुरक्षाकर्मियों और निर्दोश नागरिकों का खून बहाया जाता रहा। यहां शांति और संघर्ष साथ-साथ चलते रहे हैं। 1948 में यहुदी राज्य इजराइल की स्थापना के साथ ही अरबों के स्वर में आक्रामकता आ गई और अरब-इजराइल के बीच कभी न समाप्त होने वाला संघर्ष शुरू हो गया।
शांति की स्थापना के लिए जितने प्रयास इस क्षेत्र में हुए शायद ही कहीं हुए होंगे, लेकिन अभी तक ऐसी कोई स्थिति बनती नजर नहीं आ रही है जिससे यह विश्वास हो सके कि इस अशांत क्षेत्र में कभी स्थायी शांति की भी स्थापना होगी।
ताजा घटनाक्रम के अनुसार इजराइल और मिस्र के सुरक्षाकर्मियों के बीच हुई झड़प में मिस्र के पांच सुरक्षा कर्मियों की मौत हो गई। मिस्र ने इस घटना पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि सुरक्षाकर्मियों की मौत 1979 में सम्पन्न मिस्र-इजराइल शांति समझौते का उल्लंघन है।
1979 में दोनों देशों के बीच संधि सम्पन्न हुई तो विश्व जगत को एक उम्मीद बंधी थी कि लगातार धधकते रहने वाले मध्य-पूर्व में स्थायी शांति की स्थापना होने जा रही है। तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जिमी कार्टर ने आशा व्यक्त की थी कि इस संधि से एक नये युग का आरम्भ होगा। अन्तर्राष्ट्रीय सम्बंधों की कोरी जानकारी रखने वाले भी इस बात को समझ सकते हैं कि यह केवल शांति स्थापना की दिशा में किया गया एक तत्कालीन प्रयास भर था जिसके माध्यम से स्थायी शांति की कल्पना करना बेमानी होगा। मिस्र के तत्कालीन राष्ट्रपति अनवर अल सादात और इजराइल के प्रधानमंत्री मेनाकम बेजिन की शांति संधि के प्रति उत्पन्न हुई खुशफहमी अधिक समय तक नहीं रही। इस समझौते के दौरान शायद कुछ ऐसे प्रश्र अनुतरित रह गए थे जो तीन दशकों के बाद भी दोनों देशों के बीच स्थायी सम्बंधों के निर्माण में बाधा बने हुए हैं।
ताजा घटना के बाद दोनों देशों के रिश्तों में तनाव इस कदर बढ़ गया है कि काहिरा में प्रदर्शनकारियों ने इजरायली दूतावास इजराइल के राष्ट्रीय ध्वज को उतारकर मिस्र का राष्ट्रीय ध्वज फहरा दिया है। राष्ट्रपति हुसैनी मुबारक की सत्ता से विदाई के बाद दोनों देशों के रिश्तों में पहली दफा इस कदर कड़वाहट घुली है। इस घटना के प्रति मिस्र की गंभीरता का अनुमान इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि उसने इजराइल से अपने राजदूत को वापिस बुलाने की धमकी दी है। इससे पूर्व सन् 2000 में भी मिस्र में इजराइल से अपने राजदूत को तब वापिस बुला लिया था जब इजराइल ने फिलिस्तीनी विद्रोह को दबाने के लिए हिंसा, दमन और बल प्रयोग का सहारा लिया था।
हालांकि इजराइल ने सम्पूर्ण घटनाक्रम पर अफसोस व्यक्त करते हुए माफी मांगी है और घटना की जांच हेतु संयुक्त आयोग के निर्माण का प्रस्ताव रखा है, जिसका मिस्र ने स्वागत किया है।
दूसरी तरफ इजरायली अधिकारियों ने घटना के लिए गजा में स्थित उग्रवादियों को जिम्मेदार ठहराया है। उल्लेखनीय है कि जिस जगह मिस्र के सुरक्षाकर्मियों की मौतें हुई है वह गजा की सीमा से सटी हुई है। इजराइल का कहना है कि फिलिस्तीनी उग्रवादी मिस्र से होते हुए नेगेव के रेगिस्तान में चुपके से घुस गए और वहां तैनात पुलिसकर्मियों को मार दिया। हालांकि इजरायली अधिकारी दबी जुबान से यह भी कह रहे हैं कि मिस्र के सुरक्षाकर्मियों ने सीमा उल्लंघन का प्रयास किया था जिसकी जवाबी कार्यवाही में इजरायली सुरक्षाकर्मियों ने इन घुसपैठियों को मार गिराया। दूसरी ओर मिस्र ने इस बात से साफ इनकार किया है कि उनकी तरफ से सीमा उल्लंघन की कार्यवाही की गई थी। लेकिन जो भी हो मिस्र-इजराइल के बीच उत्पन्न ताजा विवाद के चलते मध्य-पूर्व में आपसी संघर्ष का नया दौर शुरू हो चुका है। सभी जानते हैं कि वर्तमान संघर्ष का अंत भी किसी समझौते से हो जाएगा पर स्थायी शांति की गारंटी फिर भी नहीं होगी।

1 comment:

  1. Sir, I read this artical, i am impress by this.........................
    really Good.

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