Monday, 12 March 2018

परवान चढते भारत- फ्रांस संबंध


                                                                                          


     हिंद महासागर में चीन को नियंत्रित करने के लिए भारत ने फ्रांस के साथ  महत्वपूर्ण समझौता किया है। चार दिवसीय भारत दौरे पर आए फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों और पीएम नरेद्र मोदी के बीच क्षेत्रीए व आपसी सहयोग के विभिन्न मुद्दों पर चर्चा के बाद द्विपक्षीय सहयोग पर आधारित सुरक्षा समझौते के प्रारूप पर हस्ताक्षर किये गये।
     समझौते के मुताबिक दोनों देश एक-दूसरे के  नौसैनिक अड्डों का इस्तेमाल जंगी जहाजों के आवागमन हेतू कर सकंेगे। समझौते के अनुसार दोनों देशों की सेनाएं युद्वाभ्यास, प्रशिक्षण, मानवीय सहायता और आपदा कार्यो में भी सहयोग करेंगीे। इस समय जबकि चीन कई छोटे देशों को साथ मिलाकार दक्षिण चीन सागर के साथ-साथ हिंद महासागर में अपना प्रभाव बढ़ा रहा है, ऐसे में यह समझौता काफी अहम माना जा रहा है। अमेरिका के बाद फ्रांस दूसरा ऐसा देश है जिसके साथ भारत ने इस तरह का समझौता किया है।
     रक्षा सहयोग पर आधारित समझौते के बाद अब भारत के जंगी जहाज फ्रांस में मेडागाास्कर के पास स्थित रियूनियन आईलैंड व अफ्रीकी बंदरगाह जिबूती में प्रवेश कर सकेंगे। ध्यान रहे कि पूर्वी अफ्रीका के जिबूती में चीन ने भी अपना नौसैनिक अड्डा स्थापित किया हुआ है। चीन ने साल 2017 में ही इस सैनिक ठिकाने को निर्मित किया था। इससे पहले वह हिंद महासागर में स्वेज नहर से लेकर मलक्का तक अपने पांव पसारने में लगा हुआ हैं। चीन के वनबेल्ट वन रोड प्रोजेक्ट में हिंदमहासागर के आस-पास के कई एशियाई-अफ्रीकी देश शामिल हैं। वह पाकिस्तान में ग्वादर और श्रीलंका के हबनटोटा बंदरगाह के अलावा मालदीव के कई छोटे द्वीपों पर भी अपना प्रभाव बढ़ा रहा है।
     फ्रांस के साथ भारत के संबंध हमेशा से ही आपसी सहयोग व सद्भाव पर आधारित रहे हैं। भारत के साथ सामरिक साझेदारी को फ्रांस हमेशा से महत्व देता रहा है। साल 1998 में सामरिक साझेदारी स्थापित होने के बाद से दोनों के बीच द्विपक्षीय सहयोग के सभी क्षेत्रों में उल्लेखनीय प्रगति हुई है। परमाणु आपूर्तिकत्र्ता समूह (एनएसजी) द्वारा प्रतिबंध हटाये जाने के बाद  फ्रांस पहला देश था जिसके साथ भारत ने असैन्य परमाणु सहयोग पर करार किया। फ्रांस के साथ इस अहम समझौते के बाद ही भारत के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय के साथ पूर्ण असैन्य परमाणु सहयोग पर आगे बढने का मार्ग खुला। अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी फ्रांस ने अनेक दफा भारत की भूमिका को बढ़ाये जाने की मांग का समर्थन किया । वह चाहता है कि  यूएनओं सुरक्षा परिषद् का विस्तार कर भारत जैसे लोकतांत्रिक मूल्यों में विश्वास रखने वाले देश को स्थायी सदस्यता दी जाए। फ्रांस ने एनएसजी व एमटीसीआर जैसी निर्यात नियंत्रण व्यवस्थाओं में भी भारत की सदस्यता का समर्थन किया है।
     शासनाध्यक्षों के निरंतर आवाजाही से भी दोनों देशों के संबंधों को लगातार नई ऊंचाईयां मिलती रही है। जनवरी 2008 में राष्ट्रपति निकोलस सर्कोजी गणतंत्र दिवस समारोह के मुख्यअतिथि के रूप में भारत आए थे। उसके बाद सिंतबर 2008 में पूर्व पीएम मनमोहन सिंह ने फ्रांस का दौरा किया। इस यात्रा के दौरान  भारत और फ्रांस के बीच असैनय परमाणु सहयोग के करार पर हस्ताक्षर किये गये। जुलाई 2009 में डाॅ. मनमोहन सिंह फ्रांस के सैनिक समारोह (बेस्टाईल) में मुख्यअतिथि की हैसियत से फ्रांस गए। इसके बाद 4 से 7 सितंबर 2010 को फ्रांस के राष्ट्रपति सर्कोजी दोबारा भारत आए। इस यात्रा के दौरान जीतापुर में ईपी आर एनपीपी यूनिट के कार्यान्वयन के लिए एनपीसीआईएल और अरेवा के बीच सामान्य रूप रेखा करार तथा शीघ्र कार्य शुरू करने के करार पर हस्ता़क्षर किये गए।
     10-11 अप्रेल को पीएम नरेद्र मोदी फ्रांस की यात्रा पर गए। इस यात्रा के दौरान ही 36 राफेल विमानों की खरीद का फैसला लिया गया था। यह अलग बात है कि कीमतों की वजह से राफेल डील में देरी हुई। राष्ट्रपति ओलांद 14-15 फरवरी 2013 को भारत दौरे पर आए थे। ओलांद दोबारा 2016 में  67 वें गणतंत्र दिवस समारोह के मुख्य अतिथि की हैसियत से भारत आए। इसी समारोह में फ्रांस की सेना ने भारत की सेना के साथ मिलकर गणतंत्र दिवस की परेड में भाग लिया । यह पहली दफा था जब किसी बहारी देश की सेना ने परेड में हिस्सा लिया हो।
    भारत के लिए फ्रांस एफडीआई के प्रमुख स्रोत के रूप में उभरा है। फ्रांस की 750 से अधिक कंपनियंा भारत में व्यापार कर रही हैं। भारत में निवेश करने वाला फ्रांस नौंवा सबसे बड़ा देश है। दोनों देश अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी एवं अनुप्रयोग के क्षेत्र में एक-दूसरे को महत्वपूर्ण साझेदार के रूप में देखते है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान केन्द्र इसरो और फ्रांस के नेशनल डी इटूडस स्पेटियल (सीएनइएस) के बीच सहयोग एवं साझेदारी का समृद्व इतिहास रहा है। दोनों के बीच मजबूत रक्षा संबंध है। दोनों देशों की सैनाएं नियमित अंतराल से संयुक्त अभ्यास करती है।
     इमैनुएल मैक्रों की इस यात्रा के दौरान दोनों देशांें के बीच गोपनीय तथा संवेदनशील जानकारियों से जुड़े समझौते पर भी हस्ताक्षर किये गए। इसके अलावा कुशल कर्मिकों के स्वदेश लौटने, तेज और मध्यम गति की रेल के क्षेत्र में सहयोग बढाने और रेलवे के आधुनिकीकरण के संबंध में भी समझौता किया गया। पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन के क्षेत्र में भी दोनों ने सूचनाओं के आदान प्रदान पर सहमति व्यक्त की है। स्मार्ट सिटी, शहरी परिवहन प्रणाली और शहरी बस्तियों में विकास की परियोजनाओं, समुद्री क्षेत्र में सुरक्षा, जलपोतों की निगरानी तथा सौर ऊर्जा के क्षेत्र में प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण के बारे में भी दोनों देश मिलकर काम करने को राजी हुए है। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि मैक्रों की इस यात्रा से दोनों देशों के सबंधों को नई ऊंचाई मिलसकेगी इसमें संदेह नहीं है। फिर इस तथ्य से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि फ्रांस के साथ संबंधों को बेहतर बनाने का अर्थ होगा अन्य यूरोपिय देश तथा यूरोपियन यूनीन से संबंधों को बेहतर बनाना।
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                                                          -एन. के. सोमानी
                                                                           ( व्याख्याता अर्तराष्ट्रीय राजनीति)
                                                                             एम.जे.जे. गल्र्स काॅलेज,सूरतगढ
                                                                              जिला- श्री गंगानगर (राज0)
                                                                              मो0 98284-41477
                                                                                   ई-मेलः ेदमीेवउंदप28/हउंपसण्बवउ

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