शांति के नए युग का आगाज

अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड टंªप और उŸार कोरिया के नेता किम जोंग-उन की सिंगापुर शिखर वार्ता को न केवल कोरियाई प्रायद्वीप, बल्कि वैश्विक शांति स्थापना की दिशा में एक अहम कदम माना जा रहा है। दोनों नेताओं के बीच दो दौर की वार्ता के बाद किम जोंग ने जहां पूर्णत परमाणु निरस्त्रीकरण के लिए प्रतिबद्वता जताई है, तो वहीं बदले में अमेरिका ने उŸार कोरिया को सुरक्षा की गांरटी दी है। शिखर वार्ता के बाद घोषित साझा दस्तावेज के मुताबिक अमेरिका और उŸार कोरिया के बीच अब रिश्तों का नया दौर शुरू होगा।
सिंगापुर के सैंटोसा द्वीप पर स्थित कैपेला होटल में दोनों नेताओं का मिलना कोरिया प्रायद्वीप के अमन व विश्व शांति के लिहाज से काफी अहम माना जा रहा था। कहना गलत नहीं होगा कि उत्सुक्ता और विस्मय से भरपुर इस मेराथन वार्ता में गर्मजोशी के साथ-साथ, डोनाल्ड टंªप व किम जोंग-उन का बहुत कुछ दाव पर लगा था।
पहले दौर की मुलाकात समाप्त होने के बाद जब किम ने टंªप से अंग्रेजी में कहा ’नाइस टू मीट यू, मिस्टर प्रेजीडेंट’ तथा जवाब में टंªप ने किम से कहा ’आई ट्रस्ट यू’ तभी इस बात का अहसास हो गया था कि दोनांे नेता अतीत की कड़वाहट और पूर्वाग्रहों को त्याग कर खुले दिल से बातचीत का मन बनाकर सिंगापुर आए हैं। जिस तरह से सिंगापुर में पुरानी तल्खी भूलकर टंªप और किम एक-दूसरे से गर्मजोशी से मिले व बार-बार हाथ मिलाये उससे इस बात की उम्मीद की जानी चाहिए कि सिंगापुर दस्तावेज में उल्लेखित शब्द देर-सवेर व्यावहारिक रूप लेगे ही ।
द्विपक्षीय संबंधों को सामान्य बनाने और कोरियाई प्रायद्वीप में पूर्ण परमाणु निरस्त्रीकरण को लागु करने के उदेश्य के साथ जब टंªप और किम मिले तब इस बात की संभावना बहुत कम थी कि दोनों देशों के बीच किसी तरह का कोई करार अथवा डील हो सकेगी। यद्धपि सिंगापुर घोषणा, अस्पष्ट, संदेह बढाने वाली और कुटनीतिक शब्दावली वाली डील है, जिसमें दोनों ही पक्षों की ओर से ऐसी कोई स्पष्ट प्रतिबद्धता नहीं झलकती है, जिसका मूर्तरूप से आंकलन किया सके। डील पर संदेह के कई कारण है। प्रथम तो यह कि अब जब कि किम कोरिया प्रायद्वीप में निशस्त्रीकरण की प्रक्रिया को सैद्धातिंक तौर पर स्वीकार कर चूके हंै, ऐसे में प्रश्न यह उठता है कि इसे व्यावहारिक रूप में कैसे लागु किया जाएगा। किम शुरू से ही इस प्रक्रिया को पश्चिमी देशों से आने वाले निवेश व व्यापार से जोड़कर देखते रहे हंै, जबकि डील में टंªप ने प्रतिबंधों को हटाने व उसमें ढील दिये जाने जैसी कोई बात नहीं की है। प्रतिबंधों के बारे में टंªप ने केवल इतना ही कहा कि जब यह सुनिश्चित हो जाएगा कि उŸार कोरिया के परमाणु मिसाइल अब कारगर नहीं हैं, तो प्रतिबंध हटा दिए जाएंगे। यानी किम के प्रोत्साहन व उŸार कोरिया की पहल के लिए फिलहाल डील में कुछ नहीं है। द्वितीय, डील में उŸार कोरिया के परमाणु हथियारों को नष्ट करने की कोई समय सीमा नहीं है और न ही यह स्पष्ट किया गया है कि उŸार कोरिया अपनी मिसाइल कार्यक्रम का परित्याग किस सीमा तक करेगा लेकिन यह उल्लेखनीय है कि वह ऐसा करने के लिए सहमति जता रहा है। डील पर एक प्रश्न यह भी उठ रहा है कि अमेरिका ने उŸार कोरिया को सुरक्षा का जो भरोसा दिलाया है, उस भरोसे का कोई स्पष्ट रूप अब तक सामने नहीं आया है, अलबŸाा उसने दक्षिण कोरिया के साथ सांझा सैन्य अभ्यास रोक देने के संकेत जरूर दिये हैं। गौरतलब है कि इस सैन्य अभ्यास को लेकर किम जांेग-उन काफी नाराज थे और इसकी वजह से उन्होंने वार्ता से हट जाने की धमकी भी दी थी।
दोनों नेताओं के बीच वार्ता के बाद करार के जिस स्वरूप पर हस्ताक्षर किए गए है, उसकी शब्दावली पर गौर करें तो देखेगे कि वास्तव में जो समझौता हुआ है, वह लक्ष्य से कोसों दूर है। अमेरिका चाहता था कि उŸार कोरिया हमेशा के लिए पूर्ण परमाणु निरस्त्रीरकरण के लिए राजी हो परन्तु किम ने उŸार कोरिया के पूर्ण और स्थायी तथा अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप परमाणु निरस्त्रीरकरण की रजामंदी के बजाए कोरिया प्रायद्वीप के पूर्ण निरस्त्रीकरण के प्रयास की बात कही है। इसका एक अर्थ यह भी लगाया जा सकता है कि अमेरिका ने दक्षिण कोरिया की सुरक्षा के लिए जो परमाणु अस्त्र तैनात किए हुए है, उन्हें भी हटाया जाएगा। क्या अमेरिका ऐसा करेगा ? सच तो यह है कि सिंगापुर घोषणा में परमाणु निरस्त्रीकरण को लेकर अनिश्चितंता के वह तमाम तत्व मौजूद है जो भविष्य में दोनों देशों केे बीच कड़वाहट का कारण बन सकते हैं। इसके अलावा करार में परस्पर विश्वास बहाली की दिशा में आगे बढने के किसी फार्मूले की बात भी नहीं है। करार की पालना में उŸार कोरिया परमाणु निरस्त्ररीकरण की दिशा में कोई कदम उठाता भी है तो ट्रंप सहजता से उस पर विश्वास कर लेंगे इसमें संदेह है। वार्ता से पहले जब उŸार कोरिया ने अपनी परमाणु साइट क्षेत्रों को अंतरराष्ट्रीय मीडिया के सामने नष्ट करने की कार्रवाई की तो ट्रंप ने उŸार कोरिया की इस कार्रवाई को खारीज कर दिया था। टंªप का मानना था कि यह केवल दिखावा था, क्यांेकि वहां अंतरराष्ट्रीय प्रयवेक्षकों को जाने ही नहीं दिया गया। तृतीय, उŸार कोरिया दोबारा कोई परीक्षण नहीं करेगा इसकी क्या गांरटी है। ऐसी आंशका इसलिए बैजा नहीं है कि किम जोंग जिस उदेश्य व उम्मीद को लेकर बातचीत की टेबल तक आने के लिए राजी हुए थे वह अभी पूरी नहीं हुई है। वे अमेरिका के साथ ऐसी डील चाहते हंै, जो उनके देश की अर्थव्यवस्था एवं 2.5 करोड़ नागरिकों के हित मे हो। ट्रंप ने स्पष्ट तौर पर कहा है कि उŸार कोरिया पर लगे प्रतिबंध फिलहाल जारी रहेगे। लेकिन पिछले एक माह में किम जोंग-उन का जो व्यवहार व आचरण रहा है, उससे उन पर संदेह करने का फिलहाल कोई कारण नहीं दिखता है। सिंगापुर शिखर वार्ता के बाद अन्य देश क्या रियक्ट करते है, यह भी महत्वपूर्ण है, खासकर चीन, जापान व रूस ।
टंªप इस मुलाकात को शांति कायम करने का एक मौका मान रहे हैं, वहीं दुनिया से अलग थलग रहने वाले उतर कोरिया के लिए शेष दुनिया से जुड़ने का एक महत्वपूर्ण अवसर है। दरअसल दोनों ही नेताओं के लिए यह शिखर वार्ता उनके राजनीतिक जीवन के लिए एक संजिवनी की तरह थी। ट्रंप की लोकप्रियता देश के भीतर कम हुई है। उनकी सरकार के पास दिखाने के लिए बहुत कम उपलब्धियां है। वह चाहते हैं कि अगर वे उŸार कोरिया को परमाणु कार्यक्रम से हटने के लिए राजी कर लेते हैं तो यह अतंरराष्ट्रीय राजनीति में एक ऐसी घटना होगी जिसकी ध्वनी अगले कई वर्षोें तक सुनाई देगी। इस शिखर वार्ता के दौरान अगर वे कोरिया समस्या का स्थाई समाधान करने या उस दिशा में कोई महत्वपूर्ण पहल करने में सफल हो पाते हैं तो उनका कद न केवल अमेरिका के भीतर बल्कि वैश्विक जगत में बहुत ऊंचा हो जाएगा। कुछ ऐसी ही मनोस्थिति किम जोंग की भी थी। मानवाधिकारों के हनन को लेकर वे अक्सर अंतरराष्ट्रीय आलोचनाओं का शिकार बनते रहे हैं। किम भी दक्षिण कोरिया की तरह अपने देश के नागरिकों को भी बेहतर जीवन सुविधाए देना चाहते हैं। यह तभी संभव है जब उत्तर कोरिया पर लगे आर्थिक प्रतिबंध हटे।
कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि सिंगापुर घोषणा कोरिया प्रायद्वीप में शांति बहाली की दिशा में उठाया गया एक महत्वपूर्ण कदम जरूर है, पर शांति स्थापना की मंजील अभी दूर है। लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और उŸार कोरियाई नेता किम जोेंग-उन ने शांति स्थपाना के जिस मार्ग पर चलने का मन बनाया है, वह आपसी सहयोग, त्याग और एक उदेश्य की मांग करता हैै। जाहिर है इसमें कई तरह के उतार-चढाव आऐगंे, सहमतियां-असहमतियां बनेगी और कठिन समझौते होंगे, पर 40 मिनट की बातचीत के बाद जब ट्रंप यह कहते कि दुनिया बड़ा बदलाव देखेगी। तो इस बात की उम्मीद बढ़ जाती है कि यह बदलाव सकारात्मक ही होगा ।
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अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड टंªप और उŸार कोरिया के नेता किम जोंग-उन की सिंगापुर शिखर वार्ता को न केवल कोरियाई प्रायद्वीप, बल्कि वैश्विक शांति स्थापना की दिशा में एक अहम कदम माना जा रहा है। दोनों नेताओं के बीच दो दौर की वार्ता के बाद किम जोंग ने जहां पूर्णत परमाणु निरस्त्रीकरण के लिए प्रतिबद्वता जताई है, तो वहीं बदले में अमेरिका ने उŸार कोरिया को सुरक्षा की गांरटी दी है। शिखर वार्ता के बाद घोषित साझा दस्तावेज के मुताबिक अमेरिका और उŸार कोरिया के बीच अब रिश्तों का नया दौर शुरू होगा।
सिंगापुर के सैंटोसा द्वीप पर स्थित कैपेला होटल में दोनों नेताओं का मिलना कोरिया प्रायद्वीप के अमन व विश्व शांति के लिहाज से काफी अहम माना जा रहा था। कहना गलत नहीं होगा कि उत्सुक्ता और विस्मय से भरपुर इस मेराथन वार्ता में गर्मजोशी के साथ-साथ, डोनाल्ड टंªप व किम जोंग-उन का बहुत कुछ दाव पर लगा था।
पहले दौर की मुलाकात समाप्त होने के बाद जब किम ने टंªप से अंग्रेजी में कहा ’नाइस टू मीट यू, मिस्टर प्रेजीडेंट’ तथा जवाब में टंªप ने किम से कहा ’आई ट्रस्ट यू’ तभी इस बात का अहसास हो गया था कि दोनांे नेता अतीत की कड़वाहट और पूर्वाग्रहों को त्याग कर खुले दिल से बातचीत का मन बनाकर सिंगापुर आए हैं। जिस तरह से सिंगापुर में पुरानी तल्खी भूलकर टंªप और किम एक-दूसरे से गर्मजोशी से मिले व बार-बार हाथ मिलाये उससे इस बात की उम्मीद की जानी चाहिए कि सिंगापुर दस्तावेज में उल्लेखित शब्द देर-सवेर व्यावहारिक रूप लेगे ही ।
द्विपक्षीय संबंधों को सामान्य बनाने और कोरियाई प्रायद्वीप में पूर्ण परमाणु निरस्त्रीकरण को लागु करने के उदेश्य के साथ जब टंªप और किम मिले तब इस बात की संभावना बहुत कम थी कि दोनों देशों के बीच किसी तरह का कोई करार अथवा डील हो सकेगी। यद्धपि सिंगापुर घोषणा, अस्पष्ट, संदेह बढाने वाली और कुटनीतिक शब्दावली वाली डील है, जिसमें दोनों ही पक्षों की ओर से ऐसी कोई स्पष्ट प्रतिबद्धता नहीं झलकती है, जिसका मूर्तरूप से आंकलन किया सके। डील पर संदेह के कई कारण है। प्रथम तो यह कि अब जब कि किम कोरिया प्रायद्वीप में निशस्त्रीकरण की प्रक्रिया को सैद्धातिंक तौर पर स्वीकार कर चूके हंै, ऐसे में प्रश्न यह उठता है कि इसे व्यावहारिक रूप में कैसे लागु किया जाएगा। किम शुरू से ही इस प्रक्रिया को पश्चिमी देशों से आने वाले निवेश व व्यापार से जोड़कर देखते रहे हंै, जबकि डील में टंªप ने प्रतिबंधों को हटाने व उसमें ढील दिये जाने जैसी कोई बात नहीं की है। प्रतिबंधों के बारे में टंªप ने केवल इतना ही कहा कि जब यह सुनिश्चित हो जाएगा कि उŸार कोरिया के परमाणु मिसाइल अब कारगर नहीं हैं, तो प्रतिबंध हटा दिए जाएंगे। यानी किम के प्रोत्साहन व उŸार कोरिया की पहल के लिए फिलहाल डील में कुछ नहीं है। द्वितीय, डील में उŸार कोरिया के परमाणु हथियारों को नष्ट करने की कोई समय सीमा नहीं है और न ही यह स्पष्ट किया गया है कि उŸार कोरिया अपनी मिसाइल कार्यक्रम का परित्याग किस सीमा तक करेगा लेकिन यह उल्लेखनीय है कि वह ऐसा करने के लिए सहमति जता रहा है। डील पर एक प्रश्न यह भी उठ रहा है कि अमेरिका ने उŸार कोरिया को सुरक्षा का जो भरोसा दिलाया है, उस भरोसे का कोई स्पष्ट रूप अब तक सामने नहीं आया है, अलबŸाा उसने दक्षिण कोरिया के साथ सांझा सैन्य अभ्यास रोक देने के संकेत जरूर दिये हैं। गौरतलब है कि इस सैन्य अभ्यास को लेकर किम जांेग-उन काफी नाराज थे और इसकी वजह से उन्होंने वार्ता से हट जाने की धमकी भी दी थी।
दोनों नेताओं के बीच वार्ता के बाद करार के जिस स्वरूप पर हस्ताक्षर किए गए है, उसकी शब्दावली पर गौर करें तो देखेगे कि वास्तव में जो समझौता हुआ है, वह लक्ष्य से कोसों दूर है। अमेरिका चाहता था कि उŸार कोरिया हमेशा के लिए पूर्ण परमाणु निरस्त्रीरकरण के लिए राजी हो परन्तु किम ने उŸार कोरिया के पूर्ण और स्थायी तथा अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप परमाणु निरस्त्रीरकरण की रजामंदी के बजाए कोरिया प्रायद्वीप के पूर्ण निरस्त्रीकरण के प्रयास की बात कही है। इसका एक अर्थ यह भी लगाया जा सकता है कि अमेरिका ने दक्षिण कोरिया की सुरक्षा के लिए जो परमाणु अस्त्र तैनात किए हुए है, उन्हें भी हटाया जाएगा। क्या अमेरिका ऐसा करेगा ? सच तो यह है कि सिंगापुर घोषणा में परमाणु निरस्त्रीकरण को लेकर अनिश्चितंता के वह तमाम तत्व मौजूद है जो भविष्य में दोनों देशों केे बीच कड़वाहट का कारण बन सकते हैं। इसके अलावा करार में परस्पर विश्वास बहाली की दिशा में आगे बढने के किसी फार्मूले की बात भी नहीं है। करार की पालना में उŸार कोरिया परमाणु निरस्त्ररीकरण की दिशा में कोई कदम उठाता भी है तो ट्रंप सहजता से उस पर विश्वास कर लेंगे इसमें संदेह है। वार्ता से पहले जब उŸार कोरिया ने अपनी परमाणु साइट क्षेत्रों को अंतरराष्ट्रीय मीडिया के सामने नष्ट करने की कार्रवाई की तो ट्रंप ने उŸार कोरिया की इस कार्रवाई को खारीज कर दिया था। टंªप का मानना था कि यह केवल दिखावा था, क्यांेकि वहां अंतरराष्ट्रीय प्रयवेक्षकों को जाने ही नहीं दिया गया। तृतीय, उŸार कोरिया दोबारा कोई परीक्षण नहीं करेगा इसकी क्या गांरटी है। ऐसी आंशका इसलिए बैजा नहीं है कि किम जोंग जिस उदेश्य व उम्मीद को लेकर बातचीत की टेबल तक आने के लिए राजी हुए थे वह अभी पूरी नहीं हुई है। वे अमेरिका के साथ ऐसी डील चाहते हंै, जो उनके देश की अर्थव्यवस्था एवं 2.5 करोड़ नागरिकों के हित मे हो। ट्रंप ने स्पष्ट तौर पर कहा है कि उŸार कोरिया पर लगे प्रतिबंध फिलहाल जारी रहेगे। लेकिन पिछले एक माह में किम जोंग-उन का जो व्यवहार व आचरण रहा है, उससे उन पर संदेह करने का फिलहाल कोई कारण नहीं दिखता है। सिंगापुर शिखर वार्ता के बाद अन्य देश क्या रियक्ट करते है, यह भी महत्वपूर्ण है, खासकर चीन, जापान व रूस ।
टंªप इस मुलाकात को शांति कायम करने का एक मौका मान रहे हैं, वहीं दुनिया से अलग थलग रहने वाले उतर कोरिया के लिए शेष दुनिया से जुड़ने का एक महत्वपूर्ण अवसर है। दरअसल दोनों ही नेताओं के लिए यह शिखर वार्ता उनके राजनीतिक जीवन के लिए एक संजिवनी की तरह थी। ट्रंप की लोकप्रियता देश के भीतर कम हुई है। उनकी सरकार के पास दिखाने के लिए बहुत कम उपलब्धियां है। वह चाहते हैं कि अगर वे उŸार कोरिया को परमाणु कार्यक्रम से हटने के लिए राजी कर लेते हैं तो यह अतंरराष्ट्रीय राजनीति में एक ऐसी घटना होगी जिसकी ध्वनी अगले कई वर्षोें तक सुनाई देगी। इस शिखर वार्ता के दौरान अगर वे कोरिया समस्या का स्थाई समाधान करने या उस दिशा में कोई महत्वपूर्ण पहल करने में सफल हो पाते हैं तो उनका कद न केवल अमेरिका के भीतर बल्कि वैश्विक जगत में बहुत ऊंचा हो जाएगा। कुछ ऐसी ही मनोस्थिति किम जोंग की भी थी। मानवाधिकारों के हनन को लेकर वे अक्सर अंतरराष्ट्रीय आलोचनाओं का शिकार बनते रहे हैं। किम भी दक्षिण कोरिया की तरह अपने देश के नागरिकों को भी बेहतर जीवन सुविधाए देना चाहते हैं। यह तभी संभव है जब उत्तर कोरिया पर लगे आर्थिक प्रतिबंध हटे।
कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि सिंगापुर घोषणा कोरिया प्रायद्वीप में शांति बहाली की दिशा में उठाया गया एक महत्वपूर्ण कदम जरूर है, पर शांति स्थापना की मंजील अभी दूर है। लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और उŸार कोरियाई नेता किम जोेंग-उन ने शांति स्थपाना के जिस मार्ग पर चलने का मन बनाया है, वह आपसी सहयोग, त्याग और एक उदेश्य की मांग करता हैै। जाहिर है इसमें कई तरह के उतार-चढाव आऐगंे, सहमतियां-असहमतियां बनेगी और कठिन समझौते होंगे, पर 40 मिनट की बातचीत के बाद जब ट्रंप यह कहते कि दुनिया बड़ा बदलाव देखेगी। तो इस बात की उम्मीद बढ़ जाती है कि यह बदलाव सकारात्मक ही होगा ।
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