
कई साल की धमकियों और तनाव के दौर के बाद आखिरकार उत्तर कोरिया और दंिक्षण कोरिया के राष्ट्राध्यक्ष वात्र्ता की टेबल तक आने के लिए राजी हुए। दोनों के बीच वात्र्ता हुई भी। यद्धपि दोनों के बीच किसी तरह का कोई औपचारिक अनुबंध या करार तो नहीें हो पाया लेकिन वात्र्ता के बाद जो संयुक्त घोषणा-पत्र जारी हुआ है, वह न केवल एशिया या कोरियाई प्रायद्वीप के लिए राहत देने वाला है, बल्कि उस पूरी दुनिया को शांति के प्रति आश्वसत करता है जो किम जोंग-उन की सनक के चलते आशंकित थी।
अंतरराष्ट्रीय सीमा पर स्थित ऐतिहासिक गांव पनमुनजोम के हाऊस आॅफ पीस में बातचीत के बाद उत्तर कोरिया के शीर्ष नेता किम जोंग-उन और दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति मून जे-इन द्वारा जारी साझा घोषणा-पत्र में कोरिया प्रायद्वीप को परमाणु हथियारों से मुक्त करने, सीमा पर होने वाले प्रोपेगंेडा को रोककर वहां के असैन्य क्षेत्र को शांति जोन बनाये जाने, सीमाओं की वजह से बंट गए परिवारों को फिर से मिलाने, बेहतर कनैक्टिवीटी तथा इस साल होने वाले एशियन गेम्स सहित अन्य खेल मुकाबलों में भाग लेते रहने की बात कही गई है। दोनों देशों ने उत्तर कोरिया के गैसंग में एक साझा दफ्तर खोलने का ऐलान भी किया।
साल 1953 में कोरियाई युद्व के बाद ये पहला मौका है, जब किसी उत्तर कोरियाई नेता ने दक्षिण कोरियाई जमीन पर पैर रखा है। द्वितीय विश्व युद्व की समाप्ति के बाद अमरीका और सोवियत रूस ने कोरिया को दो भागों में बांट दिया। 1948 में इस देश की दो अलग-अलग सरकारें बन गई। कोरिया युद्व (1950-1953) ने दोनों देशों में शत्रुता की खाई को और चैड़ा कर दिया। इस ऐतिहासिक मुलाकात के सप्ताह भर पहले उत्तर कोरिया ने कहा कि वो अपने परमाणु परीक्षण और इंटरकाॅन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल छोड़ने पर फिलहाल रोक लगा रहा है। दक्षिण कोरिया और अमरीकी राष्ट्रपति सहित दुनिया भर के शांतिवादी विचारकों ने किम के इस कदम का स्वागत किया था। लेकिन प्रश्न यह पैदा होता है कि अपने तुनकमिजाजी स्वभाव के चलते पूरी दुनिया से टकराने का होसला रखने वाला किम जांेग-उन ने मिसाइल कार्यक्रम से हटने का निर्णय क्यों लिया। एक प्रश्न यह भी उठता है कि हमेशा अपने खोल में छिपे रहने वाले इस सनकी शासक को घर से बाहर निकलने की आवश्यकता क्यों पड़ी। पहले चीन और फिर दक्षिण कोरिया जाने वाले किम जोंग का अगले महीने अमेरिकी दौरा भी है। जापान की ओर बार-बार मिसाइल दागने वाले किम जोंग ने जापान यात्रा के संकेत भी दिये हैं। ऐसे में इस संदेह से इंनकार नहीं किया जा सकता है कि वह अमेरिका से होने वाली वात्र्तालाप की पृष्ठभूमि तैयार कर रहा हो। उत्तर कोरिया की अर्थव्यवस्था का गला घोटने के उद्ेश्य से अमरीका और संयुक्त राष्ट्र ने उत्तर कोरिया पर कई तरह के प्रतिबंध लगाए हुए हैं। किम चाहते है कि उनकी अमरीका यात्रा के दौरान इन प्रतिबंधों के मुद्दे पर बात हो पर इससे पहले जरूरी है कि अमेरिकी समर्थक दक्षिण कोरिया के साथ उसके संबंधों में कुछ सुधार आए।
अनुमान तो यह भी लगाया जा रहा है कि उत्तर कोरिया की दिन प्रतिदिन कमजोर होती आर्थिक स्थिति ने भी किम जोंग को मिसाइल कार्यक्रम से हटने के लिए बाध्य किया हो। इस तथ्य से इसलिए इंकार नहीं किया जा सकता है, क्योेंकि पिछले दिनों उत्तर कोरिया के एक मात्र भरोसेमंद सहयोगी चीन ने भी अमेरिका, यूके तथा फ्रांस के साथ मिलकर प्रतिबंध प्रस्तावों का समर्थन करने की बात कही थी । हो सकता है चीन की इस धमकी से किम जांेग ने परमाणु परीक्षण बंद करने की एकतरफा घोषणा की हो। कहा तो यह भी जा रहा है कि परमाणु और मिसाइल ताकत हासिल करने के बाद किम जोंग अब अपने आप को सुरक्षित महसूस कर रहे हैं, उन्हें लगने लगा है कि उन्होंने उŸार कोरिया के चारों और एक ऐसा मजबूत रक्षा कवच निर्मित कर लिया है जिसे अमेरिका और उसके सहयोगी देश चाहकर भी नहीं भेद सकेगे। सामरिक ताकत हासिल करने के बाद अब वह उŸार कोरिया को आर्थिक ताकत बनाना चाहते हैं, इसके लिए जरूरी है कि अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र द्वारा लगाए गए प्रतिबंध हटे।
टेलीविजन पर लाइव प्रसारित वात्र्ता के दौरान दोनों नेता 6 दशक पहले छिड़े कोरियाई युद्व को हमेशा के लिए समाप्त करने पर राजी हुए। कोरिया युद्व के सैन्य समाधान की बजाए शांतिपूर्ण समाधान की दिशा में पहल के अलावा नियमित बैठकों और टेलिफोन के जरिये बातचीत करते रहने पर सहमति बनी। किम ने वादा किया की भविष्य में युद्व का दुर्भाग्यपूर्ण इतिहास नहीं दौहराया जाएगा। कुल मिलाकर स्थिति चाहे जो भी हो संयुक्त घोषणा पत्र से कोरियाई प्रायद्वीप में शांति की एक धंूधली सी किरण तो दिखाई दी ही है ।
घोषणा पत्र से बहुत बड़ी उम्मीद इसलिए नहीं की जा सकती है क्योकि किम जोंग-उन और मून जे-इन कि इस मुलाकात में परमाणु निरस्त्रीकरण जैसे महत्वपूर्ण मुद्दे पर कोई बात नहीं हुई। हो सकता है कि दक्षिण कोरिया ने जानबुझ कर परमाणु निरस्त्रीकरण को वार्Ÿाा के एजेंडे में शामिल न किया हो तथा इसे आगे के लिए टाल दिया गया हो। देखा जाए तो यह रणनीतिक रूप से सही भी है। उत्तर कोरिया एकदम से अपना परमाणु कार्यक्रम छोड़ने को राजी हो जाएगा इसमें संदेह था। दशकों बाद हो रही बैठक में निरस्त्रीकरण के मुददे को उठाने का मतलब था वार्Ÿाा को पटरी से उतारना, क्यों कि दोनोें ही पक्षों के बीच लंबे समय से दुश्मनी का वातावरण, परस्पर संदेह व अविश्वास की स्थिति थी। फिर, ऐतिहासिक तथ्य भी किम जोंग को रूढिवादी दक्षिण कोरिया पर एक दम से विश्वास करने के लिए प्रेरित नहीं करते हैं। इससे पहले जोंग के पिता किम जांेग-इल भी दो दफा दक्षिण कोरिया के दौरे पर गए । पहली बार 2000 में किम डे-जंग के समय और दूसरी बार 2007 में रो मू हयून के समय। इस यात्रा के दौरान किम जोंग-इल की दंिक्षण कोरिया के राष्ट्रपतियों के साथ विभिन्न मुददों पर वार्Ÿाा के अलावा दोनों देशों के बीच परमाणु हथियारों के खतरे और आर्थिक सहयोग बढानें जैसे जरूरी मुद्दों पर भी बात हुई लेकिन दक्षिण कोरिया की रूढिवादी सरकार के नजरीये में कोई परिर्वतन नहीं आया। उसने उतर कोरिया के खिलाफ कड़ा रूख अपनाए रखा। परिणामस्वरूप शांति के लिए किए जो प्रयास किए जा रहे थे वे असफल हो गए।
इसके अलावा घोषणा पत्र में साफ तौर पर उत्तर कोरिया के परमाणु कार्यक्रम पर रोक लगाने की बात नहीं की गई है। लेकिन इतना जरूर कहा गया है कि पूरे कोरियाई प्रायद्वीप को परमाणु हथियारों से मुक्त किया जाए। संयुक्त ब्यान में चरणबद्ध तरीके से इस लक्ष्य को हासिल करने की बात भी कही गई लेकिन इस लक्ष्य को हासिल करने की कोई स्पष्ट योजना या समय सीमा नहीं बताई गई। हालांकी दोनों नेताओं की इस मुलाकात के दौरान आर्थिक और सामारिक रिश्ते मतबूत करने, उत्तर कोरिया में हिरासत में रखे गए विदेशियों की रिहाई व केसाॅन्ग औद्योगिक परिसर को फिर से खोलने पर भी बात होनी चाहिए थी। यह परिसर दोनों देशों के बीच आर्थिक सहयोग का उदाहरण है, जिसे साल 2016 में बंद कर दिया गया था। इस बैठक में कोरियाई युद्व के कारण अलग हुए 60000 लोगों और उनके परिवारों पर भी चर्चा किए जाने के कयास थे। दोनों देशों के रिश्ते बिगड़ने से पहले इस बारे में 2015 में बातचीत हुई थी। उपरोक्त के अलावा मुद्दे और भी हो सकते थे जिन पर बात होनी चाहिए थी लेकिन नहीं हो पाई। फिर भी यह मुलाकात बेहतर शुरूआत का संकेत है, इसमें संदेह नहीं है।
अब दोनों देशों के बीच आवाजाही का सिलसिला शुरू हो रहा है, अगली बार जब मून जे-इन उŸार कोरिया की यात्रा पर जाएगे तो उक्त मुददों पर चर्चा की जा सकती है। उम्मीद है तब तक दोनों देशों के बीच विश्वास बहाली की प्रक्रिया जारी रहेगी। उम्मीद इस बात की भी की जानी चाहिए की भविष्य की बेहतरी का जो ऐतिहासिक कदम दोनों कोरीयाई नेताआंेे ने उठाया है, उसके सुखद परिणाम जल्द ही दुनिया के सामने होगंे।
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