Saturday, 20 February 2016

भारत-यूएई संबंध : रणनीतिक साझेदारी की दिशा में कदम

                       
                                                           
         पिछले वर्ष अगस्त माह में यूएई यात्रा के दौरान आबूधाबी के एयरपोर्ट पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का जिस गरम जोशी से स्वागत हुआ था उससे देखते हुए कहा जा रहा था कि भारत-यूएई के रिश्तों में ठंडेपन के बावजूद ऊष्मा शेष है । ऐसे में  भारत को यूएई में अपना प्रभाव स्थापित करने में ज्यादा वक्त और मेहनत नहीं लगानी पडेगी। प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा के केवल छः माह बाद ही आबूधाबी के शाहजादे एंव यूएई की सशस्त्र सेनाओं के दूसरे सर्वोच्च कंमाडर जनरल शेख मोहम्मद बिन जावेद अल नाहायान ने भारत की यात्रा कर भारत के पूर्वानुमान को सच साबित कर दिया।
कोई दो राय नहीं कि सन 1990 के दशक के आरभं में भारत ने खाड़ी क्षेत्र में प्रभाव स्थापित करने की दिशा में जो प्रयास किये निःसन्देह वो काबिले गौर थे। वर्षांे तक तेल और प्राकृतिक गैस के इस अकूत भंडार वाले क्षेत्र को महत्व न देकर कूटनीतिक मोर्चे पर तो हम पिछड़े ही, आर्थिक मोर्चे पर भी अलाभ की स्थिति में रहे। पर देर आए दुरूस्त आए को चरितार्थ करते हुए  भारतीय नेतृत्व ने वैदेशिक मोर्चे पर हूई इस चूक को समझा और विदेश नीति के परम्परागत दायरे से बाहर निकल कर खाड़ी देशों से मित्रता की पहल की। पिछले वर्ष अगस्त माह में प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी ने अपनी विदेश नीति में खाड़ी को महत्व देते हुए वहां के सबसे महत्वपूर्ण देश संयुक्त अरब अमिरात की यात्रा की तथा  वर्षो पूर्व निर्मित हुए कारोबारी संबधांे को कूटनीतिक व रणनीतिक स्तर तक ले जाने का निर्णय किया।
नरेन्द्र मोदी की यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच विकसित होते रिश्ते को ’ व्यापक रणनीतिक साझेदारी ’ के स्तर तक ले जाने की जो सहमती बनी थी उसे नाहायान की तीन दिवसीय भारत यात्रा के दौरान अमली जामा पहनाने का प्रयास किया गया।
 खाडी देशों से भारत के रिश्ते हमेशा  से ही बेहतर रहे हैं। एक समय था जब दक्षिण भारत और अरब राष्ट्रों के बीच गहरे व्यापारिक संबंध  थे । अरब देशों की अर्थव्यवस्था काफी हद तक  भारत पर निर्भर थी। लेकिन पश्चिम व अन्य यूरोपीय देशों को लगातार तरज़ीह देते रहने के कारण भारत का खाड़ी देशों से सम्पर्क कटने लगा। नतीजतन संयुक्त अरब अमिरात जैसे वर्षों पूराने सहयोगी राष्ट्र के साथ संबंधांे में ठहराव आ गया।
 हालांकी यूएई से हमारे  पूराने सांस्कृतिक व कारोबाारी संबंध  हैं। 1966 में आबूधाबी के शासक के रूप में शेख जाएद बिन सुल्तान अल नाहायान के सत्ता में आने के बाद भारत और यूएई के बीच  संबंधों का नया दौर शुरू हुआ । कारोबारी संबंधों से शुरू हुआ मित्रता और आपसी विश्वास का यह रिश्ता सन  1971 में यूएई के निर्माण के साथ और मजबूत हुआ। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अपनी विदेश नीति में यूएई को महत्व दिया और मई 1981 में यूएई की यात्रा कर दोनों देशों के रिश्ते को व्यापार और कारोबारी क्षेत्र से निकाल कर  रणनीतिक साझेदारी की उंचाई तक पंहुचाया। लेकिन इसके  बाद सन 2015 तक दोनों देशों के बीच संवाद हीनता की स्थिती रही जिसके चलते भारत खाड़ी के इस बेहद महत्वपूर्ण राष्ट्र से कूटनीतिक लाभ नहीं ले पाया जो उसके लिए जरूरी था। हालांकी बीच-बीच में विदेश मंत्री व मंत्री स्तर की वार्ताएं जारी रही पर शासनाध्यक्षों के आवागमन से रिश्तों में जो गरमाहट आती है उसका प्रायः अभाव रहा। इस खालीपन और शून्यता का लाभ अन्य राष्ट्रों के साथ-साथ हमारे पारम्परिक प्रतिद्वंदी पाकिस्तान ने भी उठाया। 70 के दशक में जब अरब देशों में इस्लामीकरण की लहर चली तो यूएई अन्य खाड़ी देशों की तरह भारत के मुकाबले खुद को पाक के करीब पाने लगा। पाक ने भी इस स्थिति का भरपूर लाभ लिया। दोनों के बीच गहरे कारोबारी संबंध निर्मित हुए। यूएई ने भारत के मुकाबले पाकिस्तान में अधिक निवेश करना बेहतर समझा। इसके अलावा ंभारत यूएई के साथ उस तरह की कोई स्थाई द्विपक्षीय सामरिक सांझेदारी विकसित करने में भी असफल रहा जैसी कि उसने अमेरीका व यूरोपीय देशों के साथ की हुई है।
यह हुए समझोते: पिछले वर्ष अगस्त माह में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की यूएई यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच पनपते रिश्तों को ’ समग्र रणनीतिक साझेदारी ’  के आधार तक ले जाने की सहमती बनी। अब उस सहमती को  अमली जामा पहनाते हुए  दोनों देशों के बीच साईबर सुरक्षा,  ढांचागत क्षेत्र में निवेश,  नवीकरणीय ऊर्जा,  मुद्रा विनिमय व्यवस्था, बीमा तथा अंतरिक्ष प्रौघोगिकी के क्षेत्र में मिलकर काम करने जैसे महत्वपूर्ण समझौते हुए। साथ ही दोनों देशों के बीच भारत-यूएई व्यापार परिषद को मजबूत बनाने तथा अगले पांच वर्षो में द्विपक्षीय व्यापार को 60 फीसदी तक  बढाए जाने पर भी सहमती बनी। इसके अलावा यूएई ने भारत के इन्फ्रास्ट्रक्चर सेक्टर में 3 अरब डालर के निवेश का वादा किया हैै। हालांकी निवेश की यह मात्रा भारत की दृष्टि से काफी कम है। भारत को इस क्षेत्र में 75 अरब डालर के निवेश का अनुमान था।
         यद्यपि यूएई के दूसरे सर्वोच्च कमांडर की यात्रा को भारतीय मीडिया ने उतना महत्व नहीं दिया जितना कि भारतीय प्रधानमंत्री की यात्रा को यूएई मीडिया ने दिया था।  पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शेख अल नाहायान की यात्रा में जरूर रूचि दिखाई। उन्होंने प्रोटोकाॅल से इतर एयरपोर्ट पहंुच कर आबुधाबी के युवराज की अगुवाई की। अल नाहायान तीन दिन भारत रहे। इन तीन दिनों में बहुत लम्बे-चैडे़ तथा दूरगामी परिणाम वाले समझौते तो नहीं हुए फिर भी इस यात्रा के रणनीतिक व राजनीतिक निहितार्थ रहेगें ऐसी संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता है।
भारत के लिए अहमः संवैधानिक राजशाही वाला मध्यपूर्व का सबसे विकसित देश यूएई भारत के लिए आर्थिक व कूटनीतिक दोनों ही मोर्चो पर महत्वपूर्ण है। आर्थिक नजरिये से देखे तो यूएई तेल के मामले में दूनिया का छटवां सबसे बडा देश है।यह भारत का तीसरा सबसे बडा व्यापारिक साझेदार है। यूएई के कुल इम्पोर्ट में 9.2 फीसदी के साथ भारत का तीसरा स्थान है। इसके अलावा यूएई के पास 800 अरब डाॅलर का दूनिया का दूसरा सबसे बडा साॅवरन वेल्थ फंड है। इस फंड के मारफत यूएई भारत के मेक इन इंडिया अभियान में भी बड़ी भूमिका निभा सकता है। भारत इसके लिए प्रयासरत है कि यूएई इस फंड का एक हिस्सा भारत के इन्फ्रास्ट्रक्चर सेक्टर में निवेश करे। कुटनीतिक संबंधों की बात करे तो नाहायान की इस यात्रा के बाद खाड़ी के अन्य देशों के साथ भी भारत की निकटता बढेगी तथा अन्य मुस्लिम देशों के साथ यात्राओं का सिलसिला शूरू हो सकेगा।
भारत भी जरूरत है यूएई कीः यूएई के नजरिये से देखे तो  भारत भी उसकी महत्वपूर्ण जरूरत साबित हो सकता है। भारत का तेज आर्थिक विकास व यहां के बडे उपभोक्ता बाजार यूएई के आकर्षण का केन्द्र हो सकते है। वहां की कई कंपनिया भारत मेें सक्रिय रूप से निवेश कर रही है। भारत करिब 270000 बैरल क्रूड प्रतिदिन आयात कर रहा है। इसके अलावा यूएई के पहले अंतर ग्रहीय अभियान में भी भारत अपनी सक्रिय भागीदारी निभा सकता है। साथ ही दोनों पक्ष प्रत्यर्पण, आपराधिक और नागरिक मामलों पर परस्पर कानूनी सहयोग, मादक द्रव्यों की तस्करी से मुकाबला करने व सूचना सहयोग की दिशा में आगे बढ सकते है।  भारत की अंतरिक्ष अनुसंधान ऐजेन्सी की कामयाबी को देखते हुए यूएई भी अपने मंगल अभियान के विकास मेें भारत का सहयोग चाहेगा। यात्रा के दौरान दोनों प़क्ष शांति व सुरक्षा के दृष्टिगत खाड़ी और हिन्द महासागर क्षेत्र में  सामुद्रिक सुरक्षा को मजबूत करने  पर भी सहमत हुए है। कुल मिलाकर देर से ही सही पर अब दोनों ही देशों ने आपसी जरूरतों को समझते हुए लम्बे समय से रिश्तों में आई जड़ता को तोड़कर सहयोग की दिशा मेें आगे बढने का जो प्रयास किया है,वह स्वागत योग्य है।
                                                              -एन. के. सोमानी