-एन. के. सोमानी
उŸार कोरिया के तानाशाह व सनक मिजाजी शासक किम जोंग उन द्वारा हाईड्रोजन बम का परीक्षण किये जाने के बाद दुनिया के माथे पर जो चिंता की लकीरे खिंच आई थी वह और अधिक गहराती जा रही हैं। उŸार कोरिया की इस हरकत से धरती तो हिली ही दुनिया के कई देश भी हिल उठे हैं।
तानाशाही शासन व्यवस्था व एक के बाद एक खतरनाक हथियारों के परीक्षण करते रहने के कारण उŸार कोरिया हमेशा से महाशक्तियों की आँख की किरकिरी रहा है। 2006 में जब उसने पहली दफा परमाणु परीक्षण कर विश्व समुदाय को अपनी उपस्थिति का अहसास करवाया तो संयुक्त राष्ट्र सहित तमाम अन्य एंजेसियों व पश्चिमी राष्ट्रों ने उस पर तरह-तरह के प्रतिबंध लगाकर उसे काबू में करना चाहा, पर महाशक्तियों का यह प्रयास ना काफी साबित हुआ। प्रतिबंधों के चलते उŸार कोरिया का विकास जरूर रूक गया पर हथियारों को परिष्कृत करने की उसकी महत्वाकांक्षा नहीं रूकी। नागरिक भुखमरी और गरीबी के शिकार हो गये। विपरीत हालत के बावजूद उŸार कोरियाई शासक प्रतिबंधों की परवाह किये बिना दृढ इरादों से अपने परमाणु कार्यक्रम की दिशा में लगातार आगे बढते रहे। हठधर्मी शासकों ने 2009 में दूसरी बार, 2013 में तीसरी और अब चैथी दफा हाईड्रोजन बम का धमाका कर विश्व समुदाय को चेता दिया है कि अपने देश और अपने राष्ट्र की समप्रभुता की सुरक्षा के नाम पर वह किसी भी तरह का समझौता करने के लिए तैयार नहीं हैं और उसकी सुरक्षा के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं।
अब वहां के युवा सुप्रीमों किम जोंग उन ने हाईड्रोजन बम का परीक्षण कर विध्वंस की दिशा मेें एक ओर कदम बढा दिया है। किम जोंग के कृत्य की संसार भर में निन्दा की जा रही है। तमाम बड़ी शक्तियां उसके इस कार्य को शांति व मानवता विरोधी कदम बता कर उसे सबक सिखाने की बात कर रही हैं। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद भी उसके विरूद्ध दंडात्मक कार्यवाही करने के संकेत दे चुकी है। ऐसे में प्रश्न यह पैदा होता है कि क्या प्रतिबंधों के जरिये उŸार कोरिया को रोकने की महाशक्तियों की मंशा कामयाब होगी ? अथवा दंड की धमकी से क्या वह अपने परमाणु हथियार खत्म करेगा ? ंपिछले एक दशक से महाशक्तियोें व अन्य वैश्विक संगठनों द्वारा उसे रोकने के लिए जो प्रयास किये गये हंै उन्हें देखते हुए कहा जा सकता है कि प्रतिबंधों की धमकियों से उसे न पहले रोका जा सका है ओर न आगे रोका जा सकेगा। किम जोंग ने प्रतिबंधों की परवाह न पहले की थी न अब करेगे। इस लिए यह सोचना बेमानी है की उŸार कोरिया अपने परमाणु कार्यक्रम से पीछे हटेगा अथवा उनको नष्ट करने के लिए राजी हो सकेगा।
पश्चिम में चीन ओर पूर्वोतर में रूस और जापान से सटा कोरियाई प्रायद्वीप 1948 से पूर्व एकीकृत राज्य था। शीत युद्ध की राजनीति के चलते वह दो स्वतंत्र राष्ट्रों दक्षिण कोरिया और उŸार कोरिया में विभाजित हो गया। एक ही भू क्षेत्र से निकले दोनों राष्ट्रों की राजनीतिक संरचना और आर्थिक ं ढांचे में आघारभूत अंतर है। जहां एक ओर दक्षिण कोरिया लोकतंात्रिक प्रणाली में विश्वास रखता है वही उŸार कोरिया तानाशाही व्यवस्था का समर्थक है। दक्षिण कोरिया विेंकसित राष्ट्रों की श्रेणी में आता है वहीं उŸार कोरिया गरीबी और भुखमरी से जूझ रहा है।
सकल घरेलू उत्पाद के मामले में दुनिया में 208 वां स्थान रखने वाला यह देश भले ही अपने नागरिको को दोनों वक्त भर पेट भोजन ने दे सका हो पर दुनिया के परमाणु संपन्न राष्ट्रों के खेमे में शामिल हो कर अपने देश की सुरक्षा की गांरटी जरूर अर्जित कर चुका है।
यूरेनियम संवर्धन की क्षमता रखने वाले उŸार कोरिया के पास खुद का विकसित मिसाईल तंत्र है जो संयुक्त राज्य अमेरिका सहित दुनिया के किसी भी हिस्से में परमाणु हमला करने मंे सक्षम है। परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर करने के बावजूद उŸार कोरिया अपने परमाणु जखीरे को लगातार बढाता रहा है। हाल वक्त में उसके पास कुल कितने परमाणु हथियार है इसका कोई तय शुदा आंकड़ा अभी तक सामने नहीं आया है। स्टाॅक होम पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट की माने तो उसके पास 6 से 8 परमाणु हथियार है। जब की कुछ अन्य देशों का मानना है कि वर्तमान में उसके पास तकरीबन 20 के आस -पास परमाणु हथियार है ।
सच तो यह है कि जिस तेजी से उŸार कोरिया अपने परमाणु कार्यक्रम की दिशा में गुपचुप तरीके से आगे बढ रहा है उसे देखते हुए इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि अगले कुछ ही वर्षो में उसका परमाणु जखिरा दुगना हो जाएगा। अमेरिकी शोधार्थियों की रिर्पोट पर विश्वास करे तो इस बात का अनुमान है कि सन् 2020 तक उसके पास 100 से अधिक परमाणु हथियार हो जाऐंगे।
कोई दो राय नहीं कि उŸार कोरिया की इस हरकत से निःशस्त्रीकरण की दिशा में किये जा रहे प्रयास तो प्रभावित होगें ही साथ ही दक्षिण पूर्व एशिया की भू राजनीति को प्रभावित करने वाली शस्त्रों की नई होड़ भी शुरू हो जाऐगी। अमेरिका, जापान और दक्षिण कोरिया के मजबूत होते गठबंधन के जवाब में चीन और रूस नए विकल्प ढूढेंगे।
ताजा परिक्षण से एक बात और साबित हो जाती है कि परमाणु तकनीक विकसित करना अब राष्ट्रों के लिए कोई ज्यादा मुश्किल नहीं रह गया है। उŸार कोरिया जैसा पिछड़ा हुआ राष्ट्र परमाणु तकनीक हासिल कर सकता है तो इसके देखा देखी परमाणु शक्ति विहीन अन्य राष्ट्र भी इस दिशा में प्रयास करेगे।
खास बात यह है कि उŸार कोरिया बड़ी होशियारी से इस बात को प्रचारित करने में कामयाब रहा है कि पश्चिम एशिया और उŸारी अफ्रीका के कुछ देशों (इराक और लीबिया) में अमेरीकी दखल से किये गये सत्ता परिवर्तन के कूकृत्य को देखते हुए उसने अपने वजूद की रक्षा के लिए यह परीक्षण किया है। उसकी इस दलील के बाद उन राष्ट्रों को परमाणु हथियार के रूप में एक ऐसा सूत्र हाथ लग जाएगा जिन पर क्षेत्रीय ताकतंे हमेशा किसी न किसी बहाने हावी रहना चाहती हंै। संसार के भिन्न - भिन्न भागों में अवस्थित यह राष्ट्र अगर अपनी सीमाओं की सुरक्षा और राष्ट्रीय संप्रभुता की रक्षा की दुहाई देकर परमाणु तकनीक विकसित करने लगेगें तो महाशक्तियाँ किस नैतिक आधार पर उन्हें रोकने का अधिकार रखेंगी ? कोई सन्देह नहीं कि आने वाले कुछ वर्षो में हमें दुनिया के कुछ ओर देशों में इस तरह की कोशिशे कामयाब होती दिखे।
हालांकी अमेरिका ने उŸार कोरिया के दावे पर सन्देह जताया है तथा जापान भी हवा से नमूने एकत्रित कर उसके दावे की जांच कर रहा है निष्कर्ष चाहे जो भी हो पर वहां के परमाणु विशेषज्ञ सीजफ्राइड हेकर की यह भविष्यवाणी तो सच साबित हो रही है जिसमें उन्हांेने कहा था कि प्योंगयांग को परमाणु हथियारों से रहित करने का प्रयास कर रहे दुनिया के बडे़ देशों की चुनौती उसके परमाणु हथियारों के बढने से बढ जाऐगी।
-एन. के. सोमानी
एसोसियट प्रोफेसर (अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति)
एम.जे.जे. गल्र्सकाॅलेज,सूरतगढ़
जिला- श्रीगंगानगर (राज)
मो0 98284-41477
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