नैम शिखर सम्मेलन की शानदार मेजबानी के बाद वैश्विक राजनीति में ईरान का कद यकायक बढ़ गया है। शिखर सम्मेलन की कामयाबी का खुमार ईरान पर से उतरता उससे पहले ही कनाड़ा ने उससे राजनीतिक सम्बंध तोडऩे की घोषणा कर दी। कनाडा ने बीते शुक्रवार को घोषणा की कि वह तेहरान में अपना दुतावास बंद कर रहा है। उसने ईरानी राजनयिको को भी अगले पांच दिनों के भीतर देश छोडऩे का एल्टीमेटम देकर दोनों देशों के बीच पायें जाने वाले परम्परागत तनावों को बढ़ा दिया है। कनाडा इस्लामिक गणतंत्र ईरान को विश्व शांति एवं सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा मानता है। उसका मानना है कि ईरान परमाणु हथियार निर्माण की दिशा में आगे बढ़ रहा है। वह ईरान को मानवाधिकारों का लगातार उल्लंघन करने वाला राष्ट्र मानता है। उसकी नजर में दुनिया भर के आतंकवादी समूहों को ईरान न केवल शरण देता है बल्कि उन्हें आर्थिक मदद भी प्रदान करता है। इतना ही नहीं उसने अपने स्थानीय कानून (आतंकवादी घटनाओं के पीडि़तों के लिए बने कानून) के तहत ईरान को आतंकवाद को प्रोत्साहन देने वाले देश के रूप में सूचीबद्ध करता है। कनाडा का यह भी आरोप है कि ईरान सीबिया की बशद अल असद सरकार को समर्थन दे रहा है और अपने परमाणु कार्यक्रमों को लेकर संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों का समान नहीं करता है। दूसरी तरफ ईरान ने कनाडा पर ईसरायल और ब्रिटेन के प्रभावों में आकर राजनीतिक सम्बंध तोडऩे का आरोप लगाया है। ईरान का मानना है कि कनाडा सरकार द्वारा तेहरान से राजनीतिक सम्बंध विच्छेद करने की घटना तुच्छ राजनीतिक हितों से प्रेरित है। उसका मानना है कि नैम शिखर सम्मेलन की सफलता से बोखलाए पश्चिमी राष्ट्रों की शह पर कनाडा नेयह शरारत पूर्ण कदम उठाया है। पश्चिमी और यूरोपियन समूहों के राष्ट्र ये कभी नहीं चाहते थे कि ईरान नैम देशों के शिखर सम्मेलन की मैजबानी करे। उसने कनाडा पर तेहरान सम्मेलन को असफल करने के प्रयासों का भी आरोप लगाया। उसने इस बात का खुलासा किया कि केनेडियन विदेश मंत्री ने संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून के नाम लिखे पत्र में उन्हें तेहरान सम्मेलन में भाग न लेने का सुझाव दिया था। ईरान ने इस बात का भी खुलासा किया कि यूएनओ महासचिव के साथ-साथ कनाडा ने अन्य देशों से भी तेहरान शिखर सम्मेलन में भाग न लेने का आह्वान किया था। अन्तर्राष्ट्रीय आलोचनाओं के बावजूद यूएनओ महासचिव बान की मून तेहरान पहुंचे। अमरीका व ईसरायल ने यूएनओ महासचिव की निंदा करते हुए कहा था कि वे ईरान में नैम राष्ट्रों की बैठक में जाकर अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय में ईरान का कद बढ़ा रहे है। सम्मेलन से पूर्व पश्चिमी राष्ट्रों ने इस बात का भरपूर प्रयास किया था कि या तो तेहरान को इस सम्मेलन की मेजबानी का अवसर ही ना मिले या फिर तेहरान शिखर सम्मेलन कम देशों की उपस्थिति के चलते पूरी तरह से असफल हो जाए। सम्मेलन से पूर्व ईसरायली प्रधानमंत्री बैजामिन नेतान्यहू ने ईरान के परमाणु प्रतिष्ठानों पर हवाई हमले की धमकी देकर ईरान की तैयारियों में बाधा उपस्थित करने का प्रयास किया था। यहूदि शासन के नेता इस धमकी के द्वारा मनोवैज्ञानिक रूप से ईरान के इरादों को डिगाना चाहते थे। लेकिन तेहरान शिखर सम्मेलन में 100 राष्ट्रों के शासनाध्यक्षों सहित 120 देशों की उपस्थिति पश्चिम के उन कुछ वर्चस्ववादी देशों को करारा जवाब था जो पिछले कई वर्षों से यह प्रचार कर रहे थे कि विश्व समुदाय ईरान के परमाणु कार्यक्रम की ओर से चिंतित है। इस बैठक से ईरान ने यह साबित कर दिया है कि अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर वह अकेला नहीं है। अब भी उसके साझेदार शेष है।
देखा जाए तो ईरान और कनाडा के बीच संबंध हमेशा से ही विवादास्पद रहे हैं। अपने-अपने राष्ट्रीय हितों के चलते दोनों के बीच परस्पर आरोप-प्रत्यारोप और वाक युद्ध की स्थिति बनी रहती है। यूएनओ के भीतर भी कनाडा ने अनेक अवसरों पर ईरान की नीतियों का विरोध किया। 2009 में भी उसने यूएनओ महासभा में ईरानी राष्ट्रपति मोहम्मद अहमदीनेजाद के सम्बोधन का बहिष्कार किया था। इसी प्रकार अप्रेल 2010 से कनाडा खुले तौर पर ईरान के परमाणु संवर्धन कार्यक्रम का विरोध कर रहा है। उसने तेहरान सरकार पर अन्तर्राष्ट्रीय नियमों के विरुद्ध कार्य करने का आरोप लगाते हुए कहा कि ईरानी सरकार वैश्विक सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा है। ईरान पर लगाए गए प्रतिबंधों का समर्थन करते हुए कनाडा के तत्कालीन विदेश मंत्री केनन लॉरेन्स ने कहा कि कनाडा अपने मित्र राष्ट्रों के साथ मिलकर ईरान से अन्तर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा को उत्पन्न खतरे का प्रभावी से जवाब देगा। नवम्बर 2011 में ईरान को परमाणु कार्यक्रम की दिशा में आगे बढऩे से रोकने के लिए कनाडा ने अमेरिका और ब्रिटेन के सथ मिलकर कड़े प्रतिबंध लागू किए। यद्यपि रूस ने इन प्रतिबंधों की आलोचना की थी। ये प्रतिबंध लागू हो जाने के बाद ईरान का इन देशों के साथ किए गए समस्त व्यापारिक समझौते समाप्त हो जाएंगे। ईरान की पेट्रोकेमिकल इण्डस्ट्रीज सहित तेल व गैस के व्यापार पर भी प्रतिबंध लागू किए गए हैं। प्रतिबंधों के लागू हो जाने के बाद इन देशों की वित्तीय संस्थाएं और बैंक ईरान में किसी प्रकार का निवेश नहीं कर सकेंगे। यद्यपि ईरान पर लगाए गए ये प्रतिबंध संयुक्त राष्ट्र संघ में लागू नहीं हो पाए क्योंकि रूस और चीन ने इन प्रतिबंधों का विरोध किया था। इसी प्रकार जनवरी 2012 में ईरान की सुप्रीम कोर्ट द्वारा एक ईरानी के खिलाफ सुनाए गए मृत्यु दण्ड के फैसले से भी दोनों देशों के बीच संबंध और अधिक तनावपूर्ण हो गए। 36 वर्षीय कम्प्यूटर इंजीनियर सईद मालेकपुर को प्रोनोग्राफिक वेबसाइट तैयार करने का आरोपी ठहराया गया था। अनेक अन्तर्राष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों में ईरानी सुप्रीम कोर्ट के निर्णय की आलोचना करते हुए सईद को तत्काल रिहा किए जाने की मांग की थी। दोनों देशों के बीच उत्पन्न ताजा विवाद भी इन देशों का एक-दूसरे के प्रति उत्पन्न पारम्परिक नजरिेये का ही परिणाम है। ईरान में भी कनाडा की वर्तमान कार्यवाही का विरोध करते हुए ईरानी मजलिस (संसद) के स्पीकर अली लारीजानी की ओटावा यात्रा रद्द कर दी है। अली अगले महिने के अन्त में विदेशी संसदों के स्पीकरों के सम्मेलन में भाग लेने के लिए कनाडा जाने वाले थे।
एन.के. सोमानी
(लेखक अन्तर्राष्ट्रीय सम्बंधों के जानकार हैं।)
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